स्वामी विवेकानंद पथ का पथिक : स्वामी आत्मानंद
गांधी जी की लाठी लेकर आगे आगे चलते हुए एक बच्चे की तस्वीर को हम कई अवसरों में देखे होंगें, हमारी स्मृति पटल में वह चित्र गहरे से अंकित है, आप सभी को यह चित्र याद होगा। इस चित्र में गांधी जी की लाठी लेकर आगे आगे चलता बच्चा तब का रामेश्वर उर्फ तुलेन्द्र वर्मा और आज के स्वामी आत्मानंद जी हैं।
बालक तुलेन्द्र का जन्म 6 अक्टूबर 1929 को रायपुर जिले के बदबंदा गांव में हुआ। पिता धनीराम वर्मा पास के स्कूल में शिक्षक थे एवं माता भाग्यवती देवी गृहणी थी।
प्रारंभिक जीवन और गांधीजी के संपर्क में
धनीराम जी वर्धा आकर गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम में अक्सर आने लगे एवं बालक तुलेन्द्र भी पिता के साथ सेवाग्राम जाने लगे। गांधी जी से उनके विशेष संबंध थे, और तुलेन्द्र गांधी जी की लाठी उठाकर उनके साथ चलते थे।
शिक्षा और स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा
तुलेन्द्र ने सेंटपाल स्कूल से प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल की परीक्षा पास की और फिर नागपुर में साइंस कालेज में शिक्षा ग्रहण की। यहां उनकी मुलाकात स्वामी विवेकानंद के विचारों से हुई, जो उनके जीवन की दिशा बदलने में सहायक बने।
स्वामी आत्मानंद का जन्म
1957 में स्वामी शंकरानंद ने तुलेन्द्र को ब्रम्हचर्य में दीक्षित किया और उन्हें 'स्वामी तेज चैतन्य' नाम दिया। बाद में वे स्वामी आत्मानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।
महत्वपूर्ण योगदान और सेवा कार्य
स्वामी आत्मानंद ने छत्तीसगढ़ में शिक्षा, मानव सेवा, और समाज की सेवा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने रायपुर में विवेकानंद आश्रम की स्थापना की और समाजिक उत्थान के लिए कई कार्य किए।
समाज के प्रति प्रतिबद्धता
स्वामी जी ने बागलादेश से आए शरणार्थियों की सेवा की, कुष्ट उन्मूलन के लिए कार्य किया और वन्यजन समुदाय के उत्थान के लिए नारायणपुर में शिक्षा केंद्र स्थापित किया।
निधन
स्वामी आत्मानंद का देहांत 27 अगस्त 1989 को राजनांदगांव के समीप एक दुर्घटना में हुआ, जिसने छत्तीसगढ़ को एक महान संत को खो दिया।